यें यादें बड़ी अजीब होती है,
खुद भी जागती है, ना मुझे सोने देती है ||
जो मैं हँसता हूँ तो खिल-खिला जाती है,
और जो मैं रोता हूँ तो मुरझा सी जाती है ||
बचने के लिए ढूढंता हूँ, एक छाता अपने लिए,
पर ये बारिश है मनमानी सी,
भिगोती ही भिगोती है ||
अब कौन सा पर्दा डालू, मैं अपने ऊपर,
ये वो कालीन है जो,
हर कदम बिछी ही होती है ||